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गुलामों ने नहीं बनाए मिस्र के पिरामिड


 Is it true or just art of mission to rewrite the history, to make clean image...? But I am happy to know that labors are graved near to Kings which is at least show the sympathy and gecognisation of labors. Now read the News Article from Jagran

Published on Jan 11 2010 at 7.14PM Retrieved on Jan 11 2010 at 11.45PM
गुलामों ने नहीं बनाए मिस्र के पिरामिड

 
लंदन। मिस्र के पुरातत्वविदों ने सैकड़ों साल से चली आ रही आम धारणा को तोड़ते हुए दावा किया है कि मिस्र की संस्कृति को दर्शाने वाले चार हजार साल पुराने पिरामिडों को गुलामों ने नहीं बल्कि दिहाड़ी मजदूरों ने बनाया है।
उनका कहना है कि विश्व के महान आश्चर्यो में से एक मिस्र के पिरामिडों को बनाने वाले मजूदर केवल मांस खाकर तीन महीनों तक लगातार काम करते थे। मरने वाले मजदूरों को सम्मान देने के लिए उन्हें इन पवित्र पिरामिडों में ही दफना दिया जाता था।
लंदन के अखबार 'डेली मेल' ने मिस्र के पुरातत्व विभाग के मुख्य अधिकारी जही हवास के हवाले से बताया कि 2575 ईसवी पूर्व से 2467 ईसवी पूर्व के दौरान शासकों के चौथे वंशजों ने इन पिरामिडों को बनवाया। 1990 में पहली बार पिरामिडों में दफन किए गए मजदूरों के बारे में पता लगा। उसके बाद किए गए अध्ययनों से मालूम हुआ है कि ठेके पर काम करने वाले इन मजदूरों ने पिरामिडों को बनाया। हवास ने कहा कि इन मजदूरों की कब्रें राजा की कब्र के बगल में ही बनाई गई है। इससे यह बात साबित होती है कि ये गुलाम नहीं थे। वरना इन्हें राजा के बगल में नहीं दफनाया जाता।
उन्होंने बताया कि उत्तरी और दक्षिणी मिस्र में पिरामिड बनाने का काम करने वाले करीब दस हजार मजदूर एक दिन में 21 गायें और 23 भेड़ें खा जाते थे। तीन महीनों में इनकी ड्यूटी बदल दी जाती थी। उन्होंने बताया कि मजदूरों की कब्र अधिकतर काली ईटों से बनी हैं और उन्हें सफेद प्लास्टर से ढक दिया गया है जबकि राजा की कब्र को सफेद संगमरमर से बनाया गया है।

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