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जेएनयू में अपराधियों की पहचान छुपाने के लिए लाठीचार्ज Lathi Charge in JNU to hide identity of Culprite

I was at BHU for my paper presentation. When I was in train to come Delhi I get call from Mritunjay he asked where I am. I heard some voices of mob but I thought it is normal. Than at morning I got call from Sanjay Uncle, he was asking what happened in JNU than I replied I am in train. Why you are asking? He replied I heard there is a cop and student clash and police tahi charged against student. And it is telecasting on TV. I thought is it? I intered in campus at 8AM and I come to know the episode. Mr. Chandan Pandey put it in right context.

Source:- http://mohallalive.com/2009/11/23/students-cops-clash-at-jnu/
Retried on Nov 24, 2009 जेएनयू में अपराधियों की पहचान छुपाने के लिए लाठीचार्ज
23 November 2009
♦ चंदन पांडेय, जेनएनयू कैंपस से
JNU board
कोई सुने तो शायद ही विश्वास करे कि भारत के सबसे अग्रणी विश्वविद्यालयके छात्रों के साथ इतना अमानवीय सलूक किया गया। एक मामूली विवाद, जिसमेंजेनयू के छात्रों का ज़रा-सा भी दोष नहीं था, पुलिस ने अपराधियों को बचानेके लिए निर्दोष छात्रों पर लाठीचार्ज किया। लाठीचार्ज में पचास से ऊपरछात्र घायल हुए हैं। पंद्रह छात्रों की हालत गंभीर है। सबसे पहले हमनिर्दोष छात्रों के स्वस्थ होने की प्रार्थना करेंगे फिर आगे की बात।
घटना कुछ यूं घटी : चार बिगड़ैल रईसजादे जेनयू आये। 24×7 ढाबे परउन्‍होंने शराब की महफिल जमायी। फिर नशे मे चूर होकर छात्रों से बदतमीजीकी। छात्रों ने, जो आजकल सेमेस्टर परीक्षाओं की तैयारी मे लगे हैं, पहलेतो इनकी “तमीजदार” हरकतों पर ध्यान नहीं दिया, पर जब एकजुट होकर विरोधकरने लगे तो चारों गुंडे भाग निकले।
गुंडों के पास कार थी, इसलिए इनकी रफ्तार के नीचे आने से बाल-बाल बचेलोगों ने विश्‍वविद्यालय सुरक्षा को फोन मिलाया। जेएनयू मेन गेट पर जबसुरक्षाकर्मियों ने इन्‍हें रोका, तब इन चार गुंडों मे से एक ने पिस्टलदिखाया। पिस्टल देखते ही बड़ा दरवाजा बंद कर दिया गया। मेन गेट पर एकनहीं, दस-पंद्रह सुरक्षाकर्मी रहते हैं। जैसे ही मेन गेट बंद हुआ, कहानीशुरू हो गयी। चूंकि विश्वविद्यालय की सुरक्षा का ज़‍िम्‍मा निजी कंपनी केहाथों मे है, इसलिए उनके सारे अधिकार दिल्ली पुलिस के पास गिरवी हैं।उन्‍होंने तुरंत दिल्ली पुलिस को बुला लिया और “महान” दिल्ली पुलिस ने आतेही अपना काम शुरू कर दिया – उन चार गुंडों को बचाने का काम।
ख़बर है कि चारों बेहद शक्तिशाली घराने से हैं। दिल्ली पुलिस कितनीताक़तवर है या दिल्ली पुलिस का एक हाईस्कूल पास सिपाही (साथ में अधिकारीभी थे) कितना ताक़तवर है, इसका अंदाज़ा इस बात से लगा सकते हैं कि छात्रोंतथा सुरक्षाकर्मियों के लाख आग्रह के बावजूद दिल्ली पुलिस की महान सत्ताने एफआईआर मे पिस्टल को पिस्टल नहीं लिखा। कभी उसे खिलौना बंदूक लिखा, तोकभी लाइटर लिखा, तो कभी कुछ लिखा।
छात्रों की मांग बस इतनी थी कि इन चार गुंडों की शिनाख्त हो। पता तोचले कि ये हैं कौन, जिनके अमीर खानदान की गुलामी दिल्ली पुलिस तक कर रहीहै, जो आराम से जेनयू मे बंदूकें लहराते दिखाई पड़ते हैं? पर दिल्ली पुलिसने यह नहीं होने दिया। और अंतत: जो हुआ, वो यह कि सैकड़ों निर्दोष छात्रअपनी मामूली मांग के बदले पुलिस की बेरहम लाठियों से पीटे गये। आंसू गैसके गोले छोड़े गये। हवाई फायर हुआ। ख़बर यह भी है कि कुछ छात्र गोली काशिकार हुए हैं। मैं चाहूंगा कि ये ख़बर अफवाह बन जाए। नौजवानों की मृत्युकी ख़बर से वीभत्स कोई दूसरी ख़बर नहीं होती है।
उन चार गुंडों को बचाने में लगी पुलिस इस कदर मुस्तैद थी कि घटनास्थलपर तीन वैन लाठी-बंदूक से लैस पुलिस पहले ही बुला ली गयी। फिर दो वैनआरएएफ (rapid action force) भी बुला लिया गया। जहां पुलिस अपने सारे कामशातिरपने के साथ पूरी कर रही थी, वहीं छात्र अपनी बात किसी तक पहुंचा नहींपा रहे थे। मसलन “ताकतवर” मीडिया भी घटनास्थल पर सात बजे के बाद पहुंचीहै, जबकि छात्र कुछ गुंडों की शिनाख्त की यह लड़ाई दिन के दो बजे से लड़रहे थे।
विश्वविद्यालय के नख-दंतविहीन सुरक्षाकर्मियों के पास हथियार की जगहवॉकी-टॉकी है। ऐसे में छात्रों के पास बस एक ही हथियार था कि वो मेन गेटखुलने न दें। पुलिस का सारा ज़ोर इसी पर था कि मेन गेट खुले और दिल्लीपुलिस (एसीपी रैंक तक के अधिकारी घटनास्थल पर थे) अपने मालिकों केमुस्टंडे बच्चों को लेकर भाग निकले, कुछ रिश्वत पानी का इंतज़ाम हो, कोईप्रोन्नति मिले।
उन चारों को पुलिस की गाड़ी, जो मेन गेट के अंदर थी, में रखा गया था।आप छात्रों के अनुशासित और मानवोचित विरोध का अंदाज़ा इस बात से लगा सकतेहैं कि वो चारों मेन गेट के इस पार थे, जहां छात्रों की तादाद पांच सौ सेऊपर थी। फिर भी कोई शारीरिक क्षति उन गुंडों को छात्रों ने नहीं पहुंचायी।
पुलिस की मुस्तैदी का दूसरा नमूना यह निकला कि मीडियाकर्मियों तक को उनचार “बहादुरों” की तस्वीर उतारने की इजाज़त नहीं दी गयी। छात्रों के पासशाम के आठ बजे तक कोई नेता तक नहीं था। हालांकि जो ख़बरें अभी रात के दोबजे तक आयी है कि जिस नेता से उम्मीदें थीं, जब वो सामने आया तो छात्रअपनी लड़ाई और मनोबल दोनों हार गये। क्या आपको लगता है कि ऐसे लोगों कानाम लेना ज़रूरी है?
अभी निहत्थे छात्र अपनी मांग मनवाने की कोशिश कर ही रहे थे कि अचानक सेमेन गेट खुल गया और लाठीचार्ज का आदेश हो गया। जो मौक़े पर थे, उनका कहनाहै कि एक-एक छात्र को पांच-पांच पुलिस वाले पीट रहे थे। छात्राओं तक कोनहीं बख्शा गया है। ख़बरों के अनुसार पचास से ऊपर छात्र ज़ख्मी हुए हैं।उन चार गुंडों को पुलिस ने इसी बीच बाहर निकाल लिया। कल से उन गुंडों केपक्ष में दलीलें मिलनी शुरू हो जाएंगी। जो कुछ नहीं कहेगा, वो भी इतना तोकहेगा ही कि – जेनयू के लड़कों को ऐसा करने की क्या ज़रूरत थी? कुछ लोगदेश के इन बेहतरीन विद्यार्थियों को पढ़ने और पढ़ते रहने की सलाह देंगे।विश्वविद्यालय के सुरक्षा नियम कुछ और कड़े हो जाएंगे, जो कि छात्रों कोही परेशान करेंगे।
अब जबकि उन चार अमीर गुंडों की पहचान नहीं हो पायी है, तो कायदे सेसरकारी महकमा इस पूरी वारदात को झूठा भी करार दे सकता है। मीडिया कोसरकारी विज्ञापन पाने का बेहतरीन मौक़ा छात्रों ने खुद लाठी खाकर दिया है।खुद के शरीर पर लाठी खा कर पुलिस वालों को प्रोन्नति पाने के क़ाबिल बनानेवाले छात्रों के प्रति आप क्या सोचते हैं? मैं घटनास्थल पर निहायत निजीकारणों से मौजूद था। अपने जीवन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण अभिलाषा को असफलहोते देख अब मेरे पास लौटने के अलावा कोई चारा नहीं था, पर जब जेनयू केमेन गेट का नज़ारा देखा तो निजी दुख को कुछ पल के लिए किनारे कर वहांमौजूद छात्रों से मिला, सुरक्षाकर्मियों से मिला, पुलिसवालों से बात की।पाया कि छात्रों की मांग बिल्कुल जायज़ थी।
chandan pandey(चंदन पांडेय। युवा कथाकर। बनारस से पढ़ाई-लिखाई। सुनोनाम की कहानी से मशहूरियत मिली। इन दिनों करनाल में रहते हैं और सामाजिकमुद्दों पर विभिन्‍न माध्‍यमों में लगातार लिख रहे हैं। उनके ब्‍लॉग कानाम है नयी बात। उनसे chandanpandey1@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

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