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NEREGA & Labour

Yes this is heading of this news. Laborer of some region feeling that wage is less than market price. Not only this but it is lengthy process too. So some laborer fell better to join open job market than NEGEGA. No doubt this... programmer help to uplift many people in rural are. And this is case where jobs are easily and available with high pries.
नरेगा को मजदूरों की ना !

Upload Time:- Aug 26, 08:38PM Retrieved on August 26 2009
लखनऊ। मजदूर और काम करने से मना कर दें..! इसलिए मना कर दें कि उन्हें नरेगा के तहत काम पाने की कवायद झंझट लगती है और ऊपर से मजदूरी के लिए मिलने वाला पैसा भी कम लगता है! आपको ताज्जुब जरूर होगा लेकिन ऐसा ही हो रहा है। इलाहाबाद, मेरठ, बिजनौर और मुजफ्फरनगर में कई इलाके ऐसे हैं, जहां ग्रामीणों ने नरेगा को नमस्कार कर दिया है।
निर्धन श्रमिकों के नजरिये से देखें तो उनकी मनाही शायद वाजिब भी है। पहले जॉब कार्ड का झंझट, कार्ड मिल गया तो काम मिलने में परेशानी। काम मिल गया तो भुगतान में बेशुमार मुश्किलें। इससे उलट ग्रामीणों को थोड़ी सी साइकिल यात्रा कर शहरी क्षेत्र तक ही तो जाना है, जहां ना काम की नाप होती है और ना भुगतान में झंझट, मजदूरी मिलती है दोगुनी, वह भी नकद। यह प्रवृत्ति कई जिलों में देखी जा रही है लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मजदूरों को काम के मुकाबले मिलने वाला मेहनताना अधिक कम लगता है। हालांकि, इलाहाबाद और उसके आसपास के क्षेत्रों में भी आश्चर्यजनक रूप से नरेगा का यह नया पहलू सामने आया है।
मेरठ के कई गांवों में नरेगा के लिए मजदूरों का टोटा पड़ गया है। इसके ठीक विपरीत महानगर के बेगमपुल, लालकुर्ती, घंटाघर, विक्टोरिया पार्क नाला आदि स्थान ऐसे हैं, जहां रोज मजदूरों का मेला लगा रहता है। हाथ में साइकिल की हैंडिल पर लटके थैले में रखे टिफन के साथ मजदूर काम की तलाश में शहर आते हैं, जहां आसानी से दो-पौने दो सौ रुपये रोज मजदूरी मिल जाती है।
बिजनौर में पिछले साल 86 हजार 840 जॉब कार्डधारकों में से सिर्फ 986 को सौ दिन का रोजगार मिल पाया, जबकि शेष को मात्र 35 दिन ही काम मिला। वजह है मजदूरी का अंतर। इस क्षेत्र के मजदूरों को नरेगा की मजदूरी रास नहीं आती, क्योंकि खुले बाजार में 150 से 180 रुपये प्रतिदिन की मजदूरी मिलती है
इसी तरह इलाहाबाद के शंकरगढ़ और आसपास पहाड़ी क्षेत्रों में गिट्टी मजदूर नरेगा के जॉब कार्ड नहीं लेना चाहते। उन्हें गिट्टी को लादने-उतारने में ही रोजाना दो से तीन सौ रुपये मजदूरी मिल जाती है, जिसका भुगतान भी तुरंत हो जाता है।

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