मुलायम सिंह ने कहा है कि वे प्रधानमंत्री से मिल कर इस बात से चिंता जाहिर करेंगे कि फेसबुक और अन्य सोसल नेटवर्किंग मिडिया पर इस्लाम से सम्बंधित कोई आपतिजनक सामग्री ना हो. उनका यह भी कहना था कि वो चाहते हैं कि सरकार इस सम्बन्ध में कोई सख्त कानून बनाये.
अब सवाल उठता है कि मुलयम आखिर क्या चाहते हैं? क्या वो सचमें मुसलमानों का भला चाहते हैं? क्या मुस्लिम समाज या किसी भी समाज कि तराकी इस बात से होगी कि उसका परलोक कैसा होगा? मुलायम और उसके साथ रहने वाले मुस्लिम ठेकेदार हमेसा से ही ब्राह्मणवादी तरीका अख्तियार करते हैं ताकि साधारण मुस्लमान उसके कब्जे में रहे. किसी भी समाज की समबसे बड़ी आवस्यकता होती है रोटी, कपड़ा माकन, स्वास्थ्य, शिक्षा, आजादी और मनुष्य की गरिमा. क्या फेसबुक पर इस्लाम सम्बन्धी आपतिजनक सामग्री हटाने से उसे यह सम मिल जायगा?
दूसरी ओर यह भी सही है कि प्रतीकों का भी एक महत्त्व होता है. लेकिन कौन मुस्लिम इन्टरनेट या फेसबुक पर बैठा है? और किसकी भावनाये आहत हो रही है?
सच यह है कि मुस्लिमो के लौकिक मामले पर ध्यान ना देकर पारलौकिक मामले पर ध्यान गैर मुस्लिम [नेता] भी देते हैं और मुस्लिम [नेता] भी.
मुस्लिम में भी कई नेता हुए हैं जिन्होंने समाज बदलने की बात कही है. पुराने ढर्रे के रहन-सहन और सोच का विरोध किया है. लेकिन क्या कभी मुस्लिम या गैर मुस्लिम ने इस पर ध्यान दिया है? वे इसलिए घ्यान नहीं देते है कि वे नहीं चाहते कि मुस्लिम समाज सचमें विकाश करे. बल्कि इन्ही धर्मो-कर्मो में फंसा रहे.
मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश से है और यहाँ मुसलमानों की सबसे बड़ी समस्या है गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा, स्वास्थ्य सुविधायो का आभाव और आज कल पुलिस के द्वारा उन्हें आतंकी समझाना. अगर वे प्रधानमंत्री बनने की सपना देख रहे है तो भी मुसलमानों की कई समस्याएं हैं.
अगली बात यह है कि अगर इसी आधार पर फेसबुक आदि सोसल मिडिया पर रोक लगाने लगे तो बहुत सी चीजों पर रोक लगाने की मांग उठ पड़ेगी. जिस तबके को पहले अछूत समझा जाता था और जिस व्यवस्थ के कारन उसे अछूत समझा जाता था आज वह उसपर जोरदार चोट कर रहा है. ऐसे में कल कोई हिंदी धर्म के नाम पर किसी चीज पर परतिबंध लगाने की मांग करने लगेगा. कल को कोई आंबेडकर, फुले, पेरियार, राम्स्वरोप वर्मा आदि के किताबोपर भी इसी आधार पर प्रतिबन्ध की मांग कर बैठेगा.
बेहरत हो की धर्म-कर्म पर खुली बहस हो. अन्यथा फायदा सिर्फ ब्रह्मंवादियो-मुल्लाओ को ही होगा.
अब देखना है मुस्लिम समाज अब जगता है या फिरसे इनकी प्यारी-प्यारी बातों में आ जाता है?
http://timesofindia.indiatimes.com/india/Mulayam-to-discuss-anti-Islam-posts-on-Facebook-with-PM-Manmohan-Singh/articleshow/14807887.cms
अब सवाल उठता है कि मुलयम आखिर क्या चाहते हैं? क्या वो सचमें मुसलमानों का भला चाहते हैं? क्या मुस्लिम समाज या किसी भी समाज कि तराकी इस बात से होगी कि उसका परलोक कैसा होगा? मुलायम और उसके साथ रहने वाले मुस्लिम ठेकेदार हमेसा से ही ब्राह्मणवादी तरीका अख्तियार करते हैं ताकि साधारण मुस्लमान उसके कब्जे में रहे. किसी भी समाज की समबसे बड़ी आवस्यकता होती है रोटी, कपड़ा माकन, स्वास्थ्य, शिक्षा, आजादी और मनुष्य की गरिमा. क्या फेसबुक पर इस्लाम सम्बन्धी आपतिजनक सामग्री हटाने से उसे यह सम मिल जायगा?
दूसरी ओर यह भी सही है कि प्रतीकों का भी एक महत्त्व होता है. लेकिन कौन मुस्लिम इन्टरनेट या फेसबुक पर बैठा है? और किसकी भावनाये आहत हो रही है?
सच यह है कि मुस्लिमो के लौकिक मामले पर ध्यान ना देकर पारलौकिक मामले पर ध्यान गैर मुस्लिम [नेता] भी देते हैं और मुस्लिम [नेता] भी.
मुस्लिम में भी कई नेता हुए हैं जिन्होंने समाज बदलने की बात कही है. पुराने ढर्रे के रहन-सहन और सोच का विरोध किया है. लेकिन क्या कभी मुस्लिम या गैर मुस्लिम ने इस पर ध्यान दिया है? वे इसलिए घ्यान नहीं देते है कि वे नहीं चाहते कि मुस्लिम समाज सचमें विकाश करे. बल्कि इन्ही धर्मो-कर्मो में फंसा रहे.
मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश से है और यहाँ मुसलमानों की सबसे बड़ी समस्या है गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा, स्वास्थ्य सुविधायो का आभाव और आज कल पुलिस के द्वारा उन्हें आतंकी समझाना. अगर वे प्रधानमंत्री बनने की सपना देख रहे है तो भी मुसलमानों की कई समस्याएं हैं.
अगली बात यह है कि अगर इसी आधार पर फेसबुक आदि सोसल मिडिया पर रोक लगाने लगे तो बहुत सी चीजों पर रोक लगाने की मांग उठ पड़ेगी. जिस तबके को पहले अछूत समझा जाता था और जिस व्यवस्थ के कारन उसे अछूत समझा जाता था आज वह उसपर जोरदार चोट कर रहा है. ऐसे में कल कोई हिंदी धर्म के नाम पर किसी चीज पर परतिबंध लगाने की मांग करने लगेगा. कल को कोई आंबेडकर, फुले, पेरियार, राम्स्वरोप वर्मा आदि के किताबोपर भी इसी आधार पर प्रतिबन्ध की मांग कर बैठेगा.
बेहरत हो की धर्म-कर्म पर खुली बहस हो. अन्यथा फायदा सिर्फ ब्रह्मंवादियो-मुल्लाओ को ही होगा.
अब देखना है मुस्लिम समाज अब जगता है या फिरसे इनकी प्यारी-प्यारी बातों में आ जाता है?
http://timesofindia.indiatimes.com/india/Mulayam-to-discuss-anti-Islam-posts-on-Facebook-with-PM-Manmohan-Singh/articleshow/14807887.cms
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